महक का संसार |
महक हमारे जीवन का अनादि काल से महत्वपूर्ण हिस्सा है। जीवन के जन्म से मरण तक हर प्रकार के क्रियाकलापों में कहीं न कहीं महक का उपयोग होता है। आज भी अगर हम सुबह से शाम तक अपनी दिनचर्या को देखें या किसी महत्वपूर्ण टी.वी. के कार्यक्रम के पश्चात् आने वाले विज्ञापनों को देखें तो लगभग 60 से 70 प्रतिशत वस्तुएं ऐसी होंगी जिनमें कहीं न कहीं महक (सुगंध/सुरस) का प्रत्यक्ष इस्तेमाल हुआ होगा और बची वस्तुओं में भी काफी ऐसी होंगी जिनमें अप्रत्यक्ष उपयोग होने की सम्भावना है। आज हम आपको अलग-अलग उपयोग होने वाली खुशबुओं के नाम और उनके अन्तर से परिचित करायेंगे। |
अत्तर (इत्र) |
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अत्तर (इत्र)प्राकृतिक सुगंध से बनाया गया एक पारम्परिक महक है, जो कि डेग-भपका की विधि द्वारा बनाया जाता है। अत्तर (इत्र) का मतलब किसी भी प्राकृतिक गन्ध (फूल, जड़ी-बूटी, मसाले, सुगंधित पौध व अन्य प्राकृतिक गन्ध का कोई स्त्रोत) को डेग एवं भपका के माध्यम से बेस तेल (चन्दन/प्राकृतिक तेल) पर आसवित कर बनाया जाता है। यह एक विशेष प्रक्रिया है, जिसमें आसवन और सम्मिश्रण एक साथ होती है, जो कि दुनिया में कहीं भी अन्य देश में नहीं पायी जाती। इस प्रक्रिया से बनी खुशबू में जो प्रकृति के नजदीक मिलने वाली उत्तम किस्म की खुशबू प्राप्त होती है, वह किसी अन्य विधि द्वारा सम्भव नहीं है। |
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यह विधि लगभग 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है। इसमें अल्कोहल या अन्य सिंथेटिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है, जो इसे विशेष रूप से लोकप्रिय बनाता है। इसका उपयोग पूजा, ध्यान, व्यक्तिगत सौन्दर्य, पान मसाला, तम्बाकू इत्यादि में बहुतायत में किया जाता है। भारत के कन्नौज शहर को भारत का इत्र नगर भी कहा जाता है, जहाँ प्राचीन समय से विभिन्न तरह के अत्तर बनाने की परम्परा है, जिनमें मुख्य रूप से निम्न अत्तर होते हैंः |
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1.गुलाब अत्तर 2. बेला अत्तर 3. हिना/शमामा अत्तर 4. केवड़ा अत्तर 5. मिट्टी अत्तर 6. गुल हिना अत्तर (मेंहदी) 7. मौल श्री अत्तर 8. चोया नख अत्तर 9. कदम्ब अत्तर |
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सुगंधित तेल |
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सुगंधित तेल प्रकृति के शुद्ध तत्व होते हैं जो पौधों के विभिन्न हिस्सों जैसे फूल, पत्ते, तना और जड़ से निकाले जाते हैं। सुगंधित तेलों में विभिन्न महक एवं चिकित्सीय गुण होते हैं। इन्हें आम तौर पर आसवन विधि से प्राप्त किया जाता है। इन्हें अक्सर सुगंध एवं सुरस, एरोमाथेरेपी, मालिश एवं स्किनकेयर में उपयोग किया जाता है। सुगंधित तेल जैसे चन्दन, गुलाब, बेला, लैवेंडर, टी ट्री, मेन्था, रोजमेरी, नींबू, खस आदि इन तेलों का उपयोग विभिन्न प्रकार के खाने व लगाने व इलाज में किया जाता है। इन तेलों के उपयोग अन्य बहुत सारे सुगंधित प्राकृतिक रसायन बनाने में, कीड़े मकोड़े,मच्छर भगाने में, हमारे आस-पास का वातावरण अच्छा व कीटाणु व रोगाणु रहित करने आदि में होता है। |
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सुगंधित जल |
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इसे हाइड्रोसोल के नाम से भी जाना जाता है जो कि सुगंधित तेलों के आसवन से निकला एक उप-उत्पाद है। कुछ सुगंधित जल इतने लोकप्रिय व माँग में है कि वह अब अपने आप में एक उत्पाद हैं जैसे- गुलाब जल, केवड़ा जल, खस जल आदि। इनका उपयोग विभिन्न खाने के पदार्थों में जैसे मिठाई, शरबत आदि में होता है तथा इन्हें उच्च किस्म के कॉस्मेटिक प्रोडक्ट जैसे क्रीम, लोशन इत्यादि बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। आज के बदलते आधुनिक परिवेश में जहाँ हम दिन भर पर्यावरण के प्रदूषण को चेहरे पर झेल रहे होते हैं, यह जल काफी उपयोगी होते हैं, हमें ताजगी का अहसास दिलाने के लिए। |
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सुगंध |
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सुगंध का मतलब लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाली खुशबू जो की प्राकृतिक अथवा कृत्रिम पदार्थ को आपस में मिलने पर प्राप्त होती है इसका उपयोग विभिन्न पदार्थ में किया जाता है जैसे साबुन, क्रीम, शैंपू, स्प्रे, परफ्यूम, रूम फ्रेशनर, अगरबत्ती इत्यादि यह केवल प्राकृतिक उत्पादों से भी बन सकती है और केवल कृत्रिम से भी और उनके दोनों के मिश्रण से भी इसे बनाया जा सकता है। यह मिश्रण इस बात पर निर्भर करता है कि हमें खुशबू किस कीमत में तथा किस उपयोग हेतु बनानी है और उसी हिसाब से इसका निर्माण किया जा किया जाता है। आमतौर पर बाजार में मिलने वाली ज्यादातर खुशबू सुगंध ही होती है। कभी-कभी बहुत छोटी शीषियों में इसे भरे जाने पर लोग इसे इत्र भी मान लेते हैं। |
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फ्लेवर (सुरस/स्वाद) |
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फ्लेवर (सुरस/स्वाद) आमतौर पर खाने वाली खुशबू के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। सुगंध की तरह यह केवल प्राकृतिक व कृत्रिम या दोनों तरह की सुगंधित पदार्थों के इस्तेमाल से बनता है और आमतौर पर बनाने के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि हम उन्हीं चीजों का इस्तेमाल करें जो की खाने योग्य हों और इंसान को उसके खाने पर कोई नुकसान ना हो। इनका उपयोग हम मिठाईयां, आइसक्रीम, शरबत, मंजन, पान मसाला आदि जैसी वस्तुओं में करते हैं।
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स्प्रे परफ्यूम |
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स्प्रे परफ्यूम आमतौर पर सुगंध का वह स्वरूप है जिसे हम स्पिरिट या अल्कोहल (इथायल अल्कोहल/रेक्टिफाइड स्पिरिट) में घुलाते हैं। जब इस सुगंध की मात्रा 15 से 30 % तक होती है तो उसे हम परफ्यूम कहते हैं। जब 8 से 15 % होती है तो हम उसे यू-डी-परफ्यूम कहते हैं और जब 4 से 8 % होती है तो उसे यू-डी- टॉयलेट कहते हैं और जब तीन से पांच प्रतिशत होती है तो उसे हम यू-डी-कोलोन कहते हैं और उससे भी कम होने पर हम उसे डिओडरेंट का नाम देते हैं। कुल मिलाकर सुगंध को इस्तेमाल करने के लिए जब स्पिरिट या अल्कोहल (इथायल अल्कोहल/रेक्टिफाइड स्पिरिट) में घुलाया जाता है, तो उसे हम परफ्यूम कहते हैं। कभी-कभी रूम फ्रेशनर या एयर फ्रेशनर बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। यह आमतौर पर व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए बनने वाले प्रोडक्ट का ही एक विशेष स्वरूप है, जिसमें ताजगी देने वाली खुशबुओं का इस्तेमाल किया जाता है। |
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रोल-ऑन सुगंध |
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यह आमतौर पर सुगंध का ही व्यक्तिगत इस्तेमाल में उपयोग होने वाला स्वरूप है जिसमें हम आमतौर पर सुगंध कम मात्रा में जैसे एक ग्राम से लेकर 10-15 ग्राम तक किसी शीशी में भरते हैं, और उसके कैप पर हम एक रोल ऑन लगा देते हैं ताकि इस्तेमाल करने में आसानी हो और यह उन लोगों के लिए ज्यादा उपयोगी है जो स्पिरिट या अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं करना चाहते और शुद्ध रूप से केवल खुशबू का ही इस्तेमाल करना चाहते हैं। कई बार इत्र भी इसी प्रकार की शीशियों में भरकर इस्तेमाल किया जाता है और कभी-कभी छोटी शीशियों में भरी होने के कारण यह रोल ऑन से इत्र का भी बाजार में भ्रम पैदा होता है। |
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एयर फ्रेशनर या एयर केयर उत्पाद |
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यह वह उत्पाद है जो आमतौर पर वातावरण को सुगंधित करने के लिए और एक अच्छा माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं इसमें हम सुगंध को अल्कोहल या पानी में घुलाकार स्प्रे के माध्यम से फैलाया जाता है। कभी-कभी अरोमा लैंप या ह्यूमिडिफायर के माध्यम से भी वातावरण में फैलाकर उपयोग में लाया जाता है। आजकल काफी पदार्थ इस तरह के उपलब्ध है जो लोग अपने ड्राइंग रूम रेस्टोरेंट या घरों को सुगंधित करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें इस्तेमाल होने वाली खुशबुएं लैवेण्डर, लेमनग्रास, ऑरेन्ज, नींबू आदि हैं। |
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मध्यवर्ती /अर्ध तैयार सुंगंधित उत्पाद |
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आंशिक रूप से तैयार माल जिसका उपयोग अन्तिम माल (सुगंध एवं सुरस) सहित अन्य उत्पादों के कच्चे माल के रूप में प्रयोग होता है। उत्पादन प्रक्रिया में मध्यवर्ती माल या तो उत्पाद का हिस्सा बन जाते हैं या प्रक्रिया में पहचान से परे बदल जाते हैं। इसका अर्थ है कि मध्यवर्ती माल उद्योगों के बीच में फिर से बेचा जाता है जैसे एरोमा केमिकल, कन्क्रीट, एब्सोल्यूट, आईसोलेट्स इत्यादि। |
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सुगंध व सुरस विकास केन्द्र कन्नौज (भारत सरकार की एमएसएमई मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था) जहाँ उपरोक्त चीजें देखने व समझने के लिए उपलब्ध हैं, जिसे केन्द्र के सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर इन्सटाग्राम, लिंकडेन) के माध्यम से भी सम्पर्क साधा जा सकता है।
वेबसाइट- www.ffdcindia.org
ई-मेल- ffdcknj@gmail.com |